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Nirjala Ekadashi निर्जला एकादशी

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। वर्ष भर की चौबीस एकादशियों में से यह एकादशी सर्वोत्तम मानी गई है। #हिंदू #धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं। अधिकमास या मलमास में इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। इन्हीं में से एक ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत में पानी पीना वर्जित है इसिलिये इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से समूची एकादशियों के व्रतों के फल की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। यह व्रत सभी को ही करना चाहिए।

इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि भोजन संयम न रखने वाले पांच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर मनवांछित फल पाया था। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी पड़ा। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम करना सिखाता है।

पानी ना पीने के तप के प्रभाव से शरीर की आंतरिक सफाई होती है। जमा हुआ पुराना मल बाहर निकल जाता है और शरीर को नई ऊर्जा मिलती है। अमेरिका के शोध कर्ताओ ने साबित किया है कि एकादशी के व्रत रखने से कैंसर जैसी बीमारी भी ठीक हो सकती है।

यदि आप निर्जल व्रत नहीं रख सकते तो पूरे दिन जल का ही सेवन करें। यदि यह भी संभव न हो तो आप एक भुक्त व्रत भी रखते हैं यानि दिन में केवल जल का सेवन करे और सायं को दान-दर्शन के बाद फलाहार और दूध का सेवन करते हैं।

यदि उपरोक्त का पालन भी न हो सके तो अनाज अन्न का सेवन न करें, दिन में 2-3 बार फलाहार, दूध आदि ले सकते हैं।

यदि उपरोक्त का पालन भी संभव न हो तो एक बार अन्न युक्त भोजन कर सकते हैं।

अपनी शारीरिक क्षमता और परिस्थिति के अनुसार आप कुछ भी चयन कर सकते हैं।

#सदगुरु #ब्रह्मऋषि #गीतानन्द जी भगवान के अनुसार पाँच ज्ञान इन्द्रियों, पाँच कर्मेंद्रियों और ग्यारहवें मन को जिसने वश में कर लिया, उसे प्रतिदिन एकादशी का पुण्यफल मिलता है।

भजन बिना भागे नहीं , मन के गंदे भाव।

स्वांस स्वांस सुमिरण करो, गुरु बतावें दाव।।

इसलिये इस दिन और प्रतिदिन गुरु मंत्र जाप का ही महत्व है। जितना भी हो सके अधिक से अधिक गुरु मंत्र या हरि ॐ महामंत्र का जाप करें।

पूजा विधि

एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन का त्याग किया जाता है। इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। इस दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु और शिव की विधिपूर्वक पूजा करें। गुरु मंत्र का जाप करें।

इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह जल से कलश भरें व सफेद वस्त्र को उस पर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण या सुपात्र गरीब को दान दें। इस दिन कलश और गौ दान का विशेष महत्व है।

व्रत विधान

इस दिन पानी नहीं पिया जाता इसलिए यह व्रत अत्यधिक श्रम साध्य होने के साथ−साथ कष्ट एवं संयम साध्य भी है। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है। इस एकादशी का व्रत करके यथासंभव अन्न, वस्त्र, छतरी, जूता, पंखी तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल लाभ प्राप्त हो जाता है।

व्रत कथा

एक दिन महर्षि व्यास ने पांडवों को एकादशी के व्रत का विधान तथा फल बताया। इस दिन जब वे भोजन करने के दोषों की चर्चा करने लगे तो भीमसेन ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा, ”पितामह! एकादशी का व्रत करते हुए समूचा पांडव परिवार इस दिन अन्न जल न ग्रहण करे, आपके इस आदेश का पालन मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं तो बिना खाए रह ही नहीं सकता। अतः चौबीस एकादशियों पर निराहार रहने की कष्ट साधना से बचने के लिए मुझे कोई एक ऐसा व्रत बताइए जिसे करने पर मुझे विशेष असुविधा न हो और वह फल भी मिल जाए जो अन्य लोगों को चौबीस एकादशी व्रत करने पर मिलेगा।”

महर्षि व्यास जानते थे कि भीमसेन के उदर में वृक नामक अग्नि है। इसीलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी उनकी भूख शांत नहीं होती। अतः भीमसेन के इस प्रकार के भाव को समझ महर्षि व्यास ने आदेश दिया, ”प्रिय भीम! तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को ही मात्र एक व्रत किया करो। इस व्रत में स्नान आचमन के समय पानी पीने का दोष नहीं होता। इस दिन अन्न न खाकर, जितने पानी में एक माशा जवन की स्वर्ण मुद्रा डूब जाए, ग्रहण करो। इस प्रकार यह व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा।” क्योंकि भीम मात्र एक एकादशी का व्रत करने के लिए महर्षि के सामने प्रतिज्ञा कर चुके थे, इसलिए इस व्रत को करने लगे। इसी कारण इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

आप सभी परम पिता परमात्मा सद्गुरु गीतानन्द जी के बताए मार्ग का अनुसरण कर अपना जीवन सफल बनाएँ। परमात्मा आपकी सभी शुभ मनोकामनाओं की पूर्ति करें, आपका जीवन मंगलमय हो ऐसी प्रार्थना है।

शुभेच्छु

ब्रह्मऋषि गीतानन्द आश्रम


#Yoga #Bhakti #Meditation #India

Special on #Nirjala #Ekadashi (2 June 2020)…

The Ekadashi of Shukla Paksha of Jyeshtha month is called Nirjala Ekadashi. This Ekadashi has been considered the best of the twenty-four Ekadashi of the year. #Hindu #Dharma’s fast holds an important place. Twenty-four Ekadashis are held in each year. The number of these rises to 26 in Adhikamas or Malmas. One of these is called Nirjala Ekadashi of Shukla Paksha of the Jyestha month. Drinking water is prohibited in this fast, so it is called Nirjala Ekadashi. It is believed that by fasting on this Ekadashi, the results of the fasts of the entire Ekadashi will be easy. Everyone should do this fast.

This fast is also known as Bhimsen Ekadashi or Pandav Ekadashi. It is mythological belief that one of the five Pandavas who did not have food restraint, Bhimsen got the desired fruit by following this fast. That’s why it was also named Bhimseni Ekadashi. Ekadashi fast is dedicated to Lord Vishnu. This fast teaches the mind to restraint.

With the effect of not drinking water, the body’s internal cleanliness is done. The frozen old feces out and the body gets new energy. American researchers have proved that fasting on Ekadashi can also cure cancer-like disease.

If you can’t fast without any reason, then consume water all day. If this is not possible, then you also keep a Bhukta Vrat, that is, consume only water in the day and eat fruit and milk after the darshan in the evening.

If the above can not be followed, then do not consume grains and food, you can take fruit, milk etc 2-3 times a day.

If it is not possible to follow the above, then you can eat food with food once.

You can choose anything according to your physical ability and circumstances.

#Sadguru #BrahmaRishi #Gitanand ji according to God, the one who has control over five knowledge senses, five karmendriyas and eleventh mind, gets the virtue of Ekadashi daily.

Bhajan does not run without running, dirty feelings of mind.

Remember your breath, Guru will tell you the promise. ।

That’s why chanting Guru Mantra is important on this day and everyday. Chant Guru Mantra or Hari Om Mahamantra as much as possible.

Worship method

Water and food are sacrificed from the sunrise of Ekadashi date to the sunrise of Dwadashi Tithi. After this, the legislation of this fast is completed by doing charity, virtue etc. On this day, first worship Lord Vishnu and Shiva. Chant the Guru Mantra.

Those who fast on this day should fill the kalash with water and put the white cloth on it and put sugar and dakshina on it and donate it to the Brahmin or supatra poor. Kalash and cow donation has special importance on this day.

Fasting Legislation

Water is not drunk on this day, so this fast is also achieved with excessive labor and restraint. On this day, worshiping Lord Vishnu in the remaining form is of special importance. By fasting on this Ekadashi, donate food, clothes, umbrella, shoes, birds and fruits etc. as much as possible. Those who donate water kalash on this day get the benefits of Ekadashi during the year.

Fasting story

One day Maharishi Vyas told the Pandavas the legislation and fruit of the fast of Ekadashi. On this day, when they started discussing the allegations of eating, Bhimsen expressed his objection and said, ′′ Grandfather! While fasting on Ekadashi, the entire Pandavas family should not take food and water on this day, I will not be able to follow your order. I can’t live without eating. So, to avoid the pain of living on twenty four Ekadashi, tell me a fast which does not have any special inconvenience to do and also get the fruit that others will get on fasting on twenty four Ekadashi. ””””

Maharishi Vyas knew that Bhimsen’s abdomen has a fire called Vrik. That’s why they don’t calm their appetite even if they eat in excessive quantities. So, understanding this type of expressions of Bhimsen, Maharishi Vyas ordered, ′′ Dear Bhim! You do only one fast on Jyeshtha Shukla Ekadashi. There is no fault of drinking water during bath in this fast. Do not eat food on this day, take the golden pose of a masha jawan in the water. By doing this fast, the fault of eating food on other ekadashi will be exalted and the benefit of the virtue of full Ekadashi will also be given. Because Bhim had pledged before Maharishi to fast only one Ekadashi, hence started doing this fast. This is why it is also called Bhimseni Ekadashi.

All of you make your life successful by following the path of the Supreme Father Sadguru Geetanand ji. May God fulfill all your auspicious wishes, I pray that your life will be good.

Good luck

Brahma Rishi Geetananda Ashram