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A Story From The Sermon of Sadguru Brahma Rishi Geetananda

सद्गुरु ब्रह्मऋषि गीतानन्द के उपदेश से एक कथा।।

मोक्ष का मार्ग।

इस कलियुग के समय में सभी कुछ उल्टा हो सकता है, पाखंडी गुरु हो सकता है एवम ज्ञानी शिष्य हो सकता है। इसलिए इस युग को कलियुग कहा गया है।

एक दिन एक युवक अपने गुरु की मालिश कर

रहा था। गुरु की पीठ को मलते हुए उसने कहा, ‘मंदिर तो बहुत सुंदर है, पर भीतर भगवान की मूर्ति नहीं है।’

गुरु ने सुना, उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। निश्चय ही वे शब्द उससे ही कहे गये थे। उसके ही सुंदर शरीर को उसने मंदिर कहा था। गुरु के क्रोध को देखकर वह युवक हंसने लगा था।

वह ऐसा ही था कि जैसे कोई जलती अग्नि पर और घृत डाल दे।

गुरु ने उसे आश्रम से अलग कर दिया ।

फिर एक सुबह जब गुरु अपने धर्मग्रंथ का अध्ययन कर रहा था, वह युवक अनायास कहीं से आकर पास बैठ गया ।

वह बैठा रहा, गुरु पढ़ता रहा।

तभी एक जंगली मधुमक्खी कक्ष में आकर बाहर जाने का मार्ग खोजने लगी। द्वार तो खुला ही था-वही द्वार, जिससे वह भीतर

आयी थी, पर वह बिलकुल अंधी होकर बंद खिड़की से निकलने की व्यर्थ चेष्टा कर रही थी।

उसकी भनभन मंदिर के सन्नाटे में गूंज रही थी। उस युवक ने खड़े होकर जोर से उस मधुमक्खी से कहा, ‘ओ, नासमझ, वह द्वार नहीं, दीवार है। रुक और पीछे देख, जहां से तेरा आना हुआ है, द्वार वही है।’

मधुमक्खी ने तो नहीं, पर उस गुरु ने ये शब्द अवश्य सुने और उसे द्वार मिल गया।

उसने युवक की आंखों में पहली बार देखा। वह वह नहीं था, जो उसका शिष्य था। ये आंखें दूसरी ही थीं। भगवद भक्ति और साधना के द्वारा उसे ब्रह्म ज्ञान हो चुका था। उसकी आँखों से शांति का प्रवाह हो रहा था।

उसने उस दिन जाना कि वह कोई साधारण शिष्य नहीं है।

गुरु ने उससे कहा, ‘मैं आज जान रहा हूं कि मेरा मंदिर भगवान से खाली है और मैं आज जान रहा हूं कि मैं आज तक दीवार से ही सिर मारता रहा हूं और मुझे द्वार नहीं मिला है।

पर अब मैं द्वार को पाने के लिए क्या करूं?

क्या करूं कि मेरा मंदिर भगवान से खाली न रहे?’

उस युवक ने कहा, ‘भगवान को चाहते हो, तो स्वयं से खाली हो जाओ।

जो स्वयं भरा है, वही भगवान से खाली है।

जो स्वयं से खाली हो जाता है, भगवान के शरणागत हो जाता है, वह पाता है कि वह सदा से ही भगवान से भरा हुआ था।

और इस सत्य तक द्वार पाना चाहते हो, तो वही करो, जो वह अब मधुमक्खी कर रही है।’

गुरु ने देखा मधुमक्खी अब कुछ नहीं कर रही है। वह दीवार पर बैठी है और बस बैठी है।

उसने समझा, वह जागा। जैसे अंधेरे में बिजली कौंध गई हो, ऐसा उसने जाना ।

और उसने देखा कि मधुमक्खी द्वार से बाहर

जा रही है।

यह कथा मेरा पूरा संदेश है।

यही मैं कह रहा हूं। भगवान को पाने को कुछ

करना नहीं है, वरन सब करना छोड़कर देखना है। दृष्टा भाव रखना हैं, कर्मों के फल सुख और दुख को समान भाव से प्रभु का प्रसाद मानकर ग्रहण करना है। समता ग्रहण कर चित्त को शांत करने है।

चित्त जब शांत होता है और श्रद्धा भक्ति और विश्वास के साथ देखता है, तो द्वार मिल जाता है।

शांत और शून्य चित्त ही द्वार है।

जब चित्त में किसी भी प्रकार की इच्छा या वासना नही हो तो वह शान्त एवम शून्य होता है। जो कि मोक्ष का द्वार है।

उस शून्य के लिए ही मेरा आमंत्रण है।

सद्गुरु ब्रह्मऋषि गीतानन्द जी कहते हैं

स्वांस चले तब चित्त, चले ताते वायु शोध।

गीतानन्द वायु रुके , होवे पूरण बोध।।

गीतानन्द सम बुद्ध रहो, देह भावना त्याग।

आप आपको लखत रहो, अस्सी पद में जाग।।

शुुभेच्छु

ब्रह्मऋषि गीतानन्द आश्रम

 

A story from the sermon of Sadguru Brahma Rishi Geetananda. ।

The path of salvation.

In this Kaliyug time, everything can be upside down, a hypocrite can be a guru and a knowledgeable disciple. That’s why this era is called Kaliyug.

One day a young man massage his teacher

Had been. While shaking the Guru’s back, he said, ‘ The temple is very beautiful, but there is no statue of God inside. I’m going to be a

The Guru heard that his anger has no place. Surely those words were spoken to him. His own beautiful body he called the temple. The young man started laughing seeing the anger of the Guru.

It was like someone throws more aloe on the burning fire.

The Guru separated him from the ashram.

Again one morning when the Guru was studying his scriptures, that young man came from somewhere unnecessarily and sat beside him.

He sat down, the Guru kept reading.

Just then a wild bee came into the room and started finding a way out. The door was open – the same door, from which it was inside

She came, but she was trying to get out of the closed window after being blind.

Her vibes were echoing in the silence of the temple. The young man stood up and loudly said to the bee, ‘ Oh, goofy, it’s not a door, it’s a wall. Stop and look back, the door is where you came from. I’m going to be a

Not the bee, but that teacher must listen to these words and he got the door.

He first saw the young man in his eyes. He wasn’t who his disciple was. These eyes were the other one. He had become the knowledge of Brahma through Bhagavad Bhakti and Sadhana. Peace was flowing through her eyes.

He knew that day that he was no ordinary disciple.

The Guru said to him, ‘ I know today that my temple is empty from God and I know today that I have been hitting my head with the wall and I have not found the door.

But now what do I do to get the door?

What should I do that my temple is not empty from God? I’m going to be a

The young man said, ‘ If you want God, get empty from yourself.

The one who is full of himself is empty from God.

He who becomes empty of himself, surrenders to God, finds that he was always full of God.

And if you want to get to this truth, do what she’s doing now bee. I’m going to be a

Guru saw the bee doing nothing now. She’s sitting on the wall and just sitting.

He understood, he woke up. As the lightning has gone out in the dark, he knew it.

And he saw that bee out the door

Is going to.

This story is my full message.

That’s what I’ve been saying. Something to get to God

Don’t have to do, but have to stop doing everything. Have to have vision, the fruits of your deeds, happiness and sorrow are to be accepted as the prasad of the Lord with the same sense. We have to calm the mind by taking equality.

When the mind is calm and devotion looks with devotion and faith, the door is found.

Calm and zero mind is the door.

When there is no desire or lust in the mind, then it is calm and zero. Which is the door of salvation.

That’s my invitation to the zero.

Sadguru Brahma Rishi Geetanand ji says

When the breath goes, the mind goes on, the air research goes on.

Geetanand air stops, how is the full sense. ।

Gitanand be like Buddha, sacrifice your body and spirit.

May you be happy, wake up in eighty position. ।

Good luck

Brahma Rishi Geetananda Ashram